पंजाब, 30 सितंबर 2021 (न्यूज़ टीम): फसल अवशेष यानि पराली जलाना उत्तर भारत, विशेषकर हरियाणा और पंजाब में एक गंभीर चिंता का विषय बन रहा है। हर साल, अक्टूबर-नवंबर की अवधि के दौरान, पराली जलाए जाने के कारण पर्यावरण इस स्तर तक बिगड़ जाता है कि हवा की गुणवत्ता खतरनाक स्तर तक पहुंच जाती है, जिससे गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा होते हैं। पराली जलाने का ये घटनाक्रम न केवल देश की खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल रही है, बल्कि विभिन्न कृषि-पारिस्थितिक को खराब कर रही और पर्यावरणीय गड़बड़ियां को भी पैदा कर रही है।
पंजाब में अगले 10-15 दिनों में धान की कटाई पूरे जोरों पर होगी, किसानों के पास अपने खेतों में पराली में आग लगाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा, क्योंकि बेलर्स ने उनसे फसल अवशेष (पराली) लेना बंद कर दिया है। बेलर्स प्रदूषण के स्तर को कम करने में एक महत्वपूर्ण स्टेकहोल्डर है, क्योंकि वह किसान से पराली लेते है, उससे एक बेल के तौर पर प्रोसेस करते है और बायोमास प्लांट्स को बैच देते हैं, जिसे बिजली पैदा करने के लिए ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है। वर्ष 2012 में बेल 145 रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीदी गई थी, जब डीजल की दर 45 रुपये था, जबकि 2021 में डीजल की दर 90 रुपये से अधिक है, लेकिन बायोमास प्लांट अब पराली का भाव 125 रुपये प्रति क्विंटल दे रहे हैं।
इसलिए, इस वर्ष खेतों में आग के कारण प्रदूषण में वृद्धि देखने को मिलेगी, क्योंकि बेलर को पराली बेचने के लिए उचित दरें नहीं दी जा रही हैं। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार पंजाब में 30 लाख हेक्टेयर में धान की खेती की जाती है और हर साल 20 से 22 मिलियन टन पराली बनती है, जिसमें से बेलर पंजाब में सालाना लगभग 8.8 लाख मीट्रिक टन पराली को संसाधित करते हैं और इसे बायोमास प्लांट्स को बेचते हैं, जिससे सालाना 97.5 मेगावाट की बिजली क्षमता का उत्पादन होता है। विभिन्न अन्य तरीकों से अवशेषों के इन-सीटू यानि स्व-स्थाने और एक्स-सीटू यानि बाह्य-स्थान प्रबंधन के लिए जमीनी स्तर पर जागरूकता पैदा करने में कुछ समय लग सकता है। सरकार को बालेरों की दुर्दशा को समझना होगा क्यूंकि वह पंजाब में सालाना लगभग 8.8 लाख मीट्रिक टन पराली को प्रोसेस करते हैं और इसे बायोमास प्लांट्स को बेचते हैं, जिससे सालाना 97.5 मेगावाट की बिजली क्षमता का उत्पादन होता है।
आईसीएआर-आईएआरआई की 2019 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, सैटेलाइट डेटा का उपयोग करते हुए रिमोट सेंसिंग के आधार पर 30 सितंबर, 2018 और 29 नवंबर, 2018 के बीच पंजाब अथवा हरियाणा में क्रमशः 59668 और 9196 आग लगाए जाने की घटनाएं सामने आयी थी| सैटेलाइट पर आधारित आंकड़ों के अनुसार अकेले पंजाब में लगभग 11.85 मिलियन टन धान के अवशेषों को खेतों में जलाया गया, जबकि हरियाणा में यह आकड़ा 1.67 मिलियन टन था। पराली को जलाने से पंजाब में 18.40 मिलियन टन ग्रीन हाउस गैसेस (जीएचजी), 1.31 मिलियन टन अन्य गैसीय वायु प्रदूषक और 0.2 मिलियन टन पार्टिकुलेट मैटर , जबकि हरियाणा में 2.6 मिलियन टन जीएचजी और 0.18 मिलियन टन पार्टिकुलेट मैटर और 0.03 मिलियन टन जीएचजी का उत्सर्जन हुआ।
यदि बेलरों को उचित दर नहीं दी जाती है, तो वह मजबूरन उन्हें किसानों से परली खरीद नहीं पायेंगें, जिस कारण किसान को मजबूरन पराली जलनि पड़ेगी, और इस कारण प्रदुषण और बढ़ेगा| यदि बेलर मूल्य दुविधा को दूर करने में विफलता या देरी की गयी तो यह न केवल इस वर्ष के बेलिंग संतुलन प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी, बल्कि सरकार द्वारा पर्यावरण की रक्षा के लिए हाल के वर्षों में लिए गए सभी सरकारी पहलों और निवेशों को अप्रभावी बना देगी।
पंजाब में अगले 10-15 दिनों में धान की कटाई पूरे जोरों पर होगी, किसानों के पास अपने खेतों में पराली में आग लगाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा, क्योंकि बेलर्स ने उनसे फसल अवशेष (पराली) लेना बंद कर दिया है। बेलर्स प्रदूषण के स्तर को कम करने में एक महत्वपूर्ण स्टेकहोल्डर है, क्योंकि वह किसान से पराली लेते है, उससे एक बेल के तौर पर प्रोसेस करते है और बायोमास प्लांट्स को बैच देते हैं, जिसे बिजली पैदा करने के लिए ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है। वर्ष 2012 में बेल 145 रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीदी गई थी, जब डीजल की दर 45 रुपये था, जबकि 2021 में डीजल की दर 90 रुपये से अधिक है, लेकिन बायोमास प्लांट अब पराली का भाव 125 रुपये प्रति क्विंटल दे रहे हैं।
इसलिए, इस वर्ष खेतों में आग के कारण प्रदूषण में वृद्धि देखने को मिलेगी, क्योंकि बेलर को पराली बेचने के लिए उचित दरें नहीं दी जा रही हैं। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार पंजाब में 30 लाख हेक्टेयर में धान की खेती की जाती है और हर साल 20 से 22 मिलियन टन पराली बनती है, जिसमें से बेलर पंजाब में सालाना लगभग 8.8 लाख मीट्रिक टन पराली को संसाधित करते हैं और इसे बायोमास प्लांट्स को बेचते हैं, जिससे सालाना 97.5 मेगावाट की बिजली क्षमता का उत्पादन होता है। विभिन्न अन्य तरीकों से अवशेषों के इन-सीटू यानि स्व-स्थाने और एक्स-सीटू यानि बाह्य-स्थान प्रबंधन के लिए जमीनी स्तर पर जागरूकता पैदा करने में कुछ समय लग सकता है। सरकार को बालेरों की दुर्दशा को समझना होगा क्यूंकि वह पंजाब में सालाना लगभग 8.8 लाख मीट्रिक टन पराली को प्रोसेस करते हैं और इसे बायोमास प्लांट्स को बेचते हैं, जिससे सालाना 97.5 मेगावाट की बिजली क्षमता का उत्पादन होता है।
आईसीएआर-आईएआरआई की 2019 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, सैटेलाइट डेटा का उपयोग करते हुए रिमोट सेंसिंग के आधार पर 30 सितंबर, 2018 और 29 नवंबर, 2018 के बीच पंजाब अथवा हरियाणा में क्रमशः 59668 और 9196 आग लगाए जाने की घटनाएं सामने आयी थी| सैटेलाइट पर आधारित आंकड़ों के अनुसार अकेले पंजाब में लगभग 11.85 मिलियन टन धान के अवशेषों को खेतों में जलाया गया, जबकि हरियाणा में यह आकड़ा 1.67 मिलियन टन था। पराली को जलाने से पंजाब में 18.40 मिलियन टन ग्रीन हाउस गैसेस (जीएचजी), 1.31 मिलियन टन अन्य गैसीय वायु प्रदूषक और 0.2 मिलियन टन पार्टिकुलेट मैटर , जबकि हरियाणा में 2.6 मिलियन टन जीएचजी और 0.18 मिलियन टन पार्टिकुलेट मैटर और 0.03 मिलियन टन जीएचजी का उत्सर्जन हुआ।
यदि बेलरों को उचित दर नहीं दी जाती है, तो वह मजबूरन उन्हें किसानों से परली खरीद नहीं पायेंगें, जिस कारण किसान को मजबूरन पराली जलनि पड़ेगी, और इस कारण प्रदुषण और बढ़ेगा| यदि बेलर मूल्य दुविधा को दूर करने में विफलता या देरी की गयी तो यह न केवल इस वर्ष के बेलिंग संतुलन प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी, बल्कि सरकार द्वारा पर्यावरण की रक्षा के लिए हाल के वर्षों में लिए गए सभी सरकारी पहलों और निवेशों को अप्रभावी बना देगी।